अब पार्किसंस का इलाज संभव, वैज्ञानिकों ने विकसित की नई दवा, ऐसे करती है काम
सेहतराग टीम
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा का पता लगाया है जिससे पार्किसंस के इलाज की उम्मीद जगी है। अमेरिका की बायोटेक कंपनी न्यूरोलिक्स के शोधकर्ताओं ने पशुओं पर अध्ययन कर यह दावा किया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने डिस्किनेशिया पर एनएलएक्स -112 (NLX-112) नामक दवा के प्रभाव का विश्लेषण किया। डिस्किनेशिया पार्किसंस रोग की ही एक रूप है, जो कई वर्षों से लेवोडोपा आधारित दवाओं को लेने से दुष्परिणाम के रूप में सामने आता है। ये दवाएं पार्किसंस से बचने के लिए खाई जाती हैं।
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क्या है पार्किसंस की बीमारी?
शोधकर्ताओं ने कहा कि पार्किसंस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग खुद-ब-खुद कंपन करते रहते हैं। यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रोजमर्रा के कार्यों को असंभव बना सकता है। उन्होंने कहा कि डिस्किनेशिया को ठीक करने के लिए लोग मुख्य एमेंटैडाइन नामक दवा का प्रयोग करते हैं। हर किसी व्यक्ति को यह दवा सूट भी नहीं करती है, जिसके दुष्प्रभाव भी कई बार सामने आते हैं।
मस्तिष्क की कोशिकाओं को लक्षित करती है 'एनएलएक्स -112'
शोधकर्ताओं की टीम के मुताबिक, लगातार पांच वर्षो तक लेवोडोपा लेने से लगभग 50 फीसद पार्किसंस के मरीजों को डिस्किनेशिया की समस्या का सामना करना पड़ता है और 80 फीसद लोगों में 10 वर्र्षो बाद इसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि 'एनएलएक्स -112' सीधे मस्तिष्क के भीतर सेरोटोनिन कोशिकाओं को लक्षित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य डोपामाइन (रसायन)को कोशिकाओं में जारी कर डिस्किनेशिया को कम करना होता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अन्य दवाएं डोपामाइन को अनिश्चित तरीके से जारी कर डिस्किनेशिया के विकास में योगदान देती हैं।
बंदरों पर किया अध्ययन-
यह अध्ययन न्यूरोफॉर्माकोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें 'एनएलएक्स -112' का परीक्षण पार्किसंस जैसे लक्षणों वाले बंदरों पर किया गया था। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि लेवोडोपा के जरिये पार्किसंस का इलाज करने पर बंदरों में भी मनुष्यों की तरह दुष्प्रभाव देखने को मिले। इस दौरान शोधकर्ताओं ने यह भी जांच की कि केवल 'एनएलएक्स -112' और इसके साथ लेवोडोपा के संयोजन वाली दवाएं लेने से डिस्केनेशिया और पार्किसंस के लक्षणों कैसे प्रभावित होते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि 'एनएलएक्स -112' ने सफलतापूर्वक डिस्केनेशिया को कम कर दिया और लेवोडोपा की प्रभावशीलता को बनाए रखा।
(साभार- दैनिक जागरण)
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